कुंडलिनी
तंत्र साधना के नियम
तंत्र साधना के नियम
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१. पूर्ण गोपनीयता का ध्यान रखते हुए गुरु के
निर्देशों का पालन और प्रदत्त मार्ग का अनुसरण आवश्यक तत्व है इस साधना पद्धति में
|अपने विचार और अपनी बुद्धि का प्रयोग तकनिकी रूप से न करें |
निर्देशों का पालन और प्रदत्त मार्ग का अनुसरण आवश्यक तत्व है इस साधना पद्धति में
|अपने विचार और अपनी बुद्धि का प्रयोग तकनिकी रूप से न करें |
२. स्वयं को भैरव अर्थात शिवांश मानते हुए
सहयोगिनी को भैरवी अर्थात देवी मानें और पूर्ण श्रद्धा की भावना से पूज्य रूप में
ही साधना करें |सदैव मन में रहे की भगवती की ही कृपा से उनके ही द्वारा आपको शक्ति
और साधना में सफलता मिलेगी |
सहयोगिनी को भैरवी अर्थात देवी मानें और पूर्ण श्रद्धा की भावना से पूज्य रूप में
ही साधना करें |सदैव मन में रहे की भगवती की ही कृपा से उनके ही द्वारा आपको शक्ति
और साधना में सफलता मिलेगी |
३. किसी भी प्रकार के भोग अथवा पतन के विचार मन
में नहीं आने चाहिए |
में नहीं आने चाहिए |
४. गुरु पत्नी ,बहन ,भाई की पत्नी ,पुत्री
,पुत्रवधू के साथ कभी न तो साधना होती है न ही कल्पना की जा सकती है |यह सदैव
ध्यान रखें |
,पुत्रवधू के साथ कभी न तो साधना होती है न ही कल्पना की जा सकती है |यह सदैव
ध्यान रखें |
५.
स्वयं को शुद्ध और पवित्र रखें |
आचरण को शुद्ध रखते हुए सत्य बोलना और सभी से विनम्रतापूर्वक मिलना आवश्यक है |
स्वयं को शुद्ध और पवित्र रखें |
आचरण को शुद्ध रखते हुए सत्य बोलना और सभी से विनम्रतापूर्वक मिलना आवश्यक है |
६. स्वयं की दिनचर्या में सुधार करते हुए जल्दी
उठना और समय पर सोना |प्रातः और संध्या को प्रार्थना -संध्यावंदन करते हुए नियमित
प्राणायाम ,धारणा और ध्यान का अभ्यास करना चाहिए |
उठना और समय पर सोना |प्रातः और संध्या को प्रार्थना -संध्यावंदन करते हुए नियमित
प्राणायाम ,धारणा और ध्यान का अभ्यास करना चाहिए |
७. भैरवी
साधना कुंडलिनी जागरण साधना है तंत्र मार्ग से अतः कुंडलिनी प्राणायाम अत्यंत
प्रभावशाली सिद्ध होते हैं |अपने मन और मष्तिष्क को नियंत्रण में रखकर कुंडलिनी
योग का लगातार अभ्यास स्वास्थ्य और सफलता की द्रृष्टि से उत्तम होता है |
साधना कुंडलिनी जागरण साधना है तंत्र मार्ग से अतः कुंडलिनी प्राणायाम अत्यंत
प्रभावशाली सिद्ध होते हैं |अपने मन और मष्तिष्क को नियंत्रण में रखकर कुंडलिनी
योग का लगातार अभ्यास स्वास्थ्य और सफलता की द्रृष्टि से उत्तम होता है |
८. संयम और सम्यक नियमों का पालन करते हुए लगातार
साधना रत अवस्था में भगवती का ध्यान करने से धीरे धीरे कुंडलिनी जाग्रत होने लगती
है और जब यह जाग्रत हो जाती है तो व्यक्ति पहले जैसा नहीं रह जाता |वह दिव्य पुरुष
बन जाता है |
साधना रत अवस्था में भगवती का ध्यान करने से धीरे धीरे कुंडलिनी जाग्रत होने लगती
है और जब यह जाग्रत हो जाती है तो व्यक्ति पहले जैसा नहीं रह जाता |वह दिव्य पुरुष
बन जाता है |
९. साधना में रति की अवस्था में स्खलन नहीं होना
चाहिए |ऐसा होने पर शक्ति जाती रहती है और जिस चक्र तक स्थिति होती है वहीं वापस आ
जाती है ,अतः इस बात का ध्यान रखें और सावधान रहें |
चाहिए |ऐसा होने पर शक्ति जाती रहती है और जिस चक्र तक स्थिति होती है वहीं वापस आ
जाती है ,अतः इस बात का ध्यान रखें और सावधान रहें |
१०. कोई भी ऐसा कार्य अथवा क्रिया न करें जो
अंतरात्मा की दृष्टि में गलत हो अर्थात जिस कार्य के लिए मन कहे की यह नहीं होना
चाहिए अथवा यह गलत है वह कार्य न करें क्योंकि गलत होने की भावना आना ही पाप का
बोधक है तथा पाप का प्रायश्चित करना होता है अतः इससे बचें |
अंतरात्मा की दृष्टि में गलत हो अर्थात जिस कार्य के लिए मन कहे की यह नहीं होना
चाहिए अथवा यह गलत है वह कार्य न करें क्योंकि गलत होने की भावना आना ही पाप का
बोधक है तथा पाप का प्रायश्चित करना होता है अतः इससे बचें |
भैरवी चक्र साधना में साधक–साधिकाओं के लिए निर्देश
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1.किसी भी नारी कि उपेक्षा या अपमान न करें।
2.कन्याओं को देवी का रूप समझकर उनकी पूजा करें।
3.कन्याओं–नारियों की शक्ति पर सहायता एवं रक्षा करें।
4.पेड़ न काटे, न कटवाएं।
5.मदिरापान या मांसाहार केवल साधना हेतु है। इसे व्यसन न बनाये।जो मस्तिष्क और विवेक को नष्ट कर दे; उस मदिरापान से भैरव जी कुपित होकर उसका विनाश कर देते है।
6.भैराविमार्ग की अपनी साधना को गुप्त रखें, किसी को न बताएं।
7.दिन में सामान्य पूजा करें।साधना 9 से 1 बजे तक रात्रि में प्रशस्त हैं।
8.नवमी एवं चतुर्दशी को भैरवी में स्थित देवी की पूजा करें।
9.इस मार्ग के आलोचकों से मत उलझे। इस संसार में भांति–भांति के प्राणी रहते है। सब की प्रवृत्ति एवं एवं सोच अलग–अलग होती है। न तो किसी को इस मार्ग कि ओर प्रेरित करे, न ही विरोध करे।
10.यह प्रयास रखे कि भैरवी सदा प्रसन्न रहे।
11.यदि वह मांसाहारी नहीं है; तो वानस्पतिक गर्म और कामोत्तेजक पदार्थों का सेवन करें और विजया से निर्मित मद का प्रयोग करें।
अन्य जानकारियाँ
11.आसन, वस्त्र लाल होते हैं। एक वस्त्र का प्रयोग करे, जो ढीला हो। कुछ सिले हुए वस्त्र की भी वर्जना करते हैं।
12.पूजा केवल नवमी–चतुर्दशी को होती है। अन्य तिथियों में केवल साधना होती है।
13.साधना के अनेक स्तर है। यहाँ सामान्य स्तर दिया गया है। भैरवी को सामने बैठाकर देवीरुप कल्पना में मंत्र जप करने से मन्त्र सिद्ध होते है।
14.मूलाधार के प्लेट के नीचे से खोपड़ी कि जोड़ तक और सिर के चाँद तक में मुख्य चक्र होते है। साधक–साधिका को इस पर जैतून या चमेली के तेल की मालिश करते रहना चाहिए।
15.इन चक्रों पर नीचे से ऊपर तक होंठ फेरने और चुम्बन लेने से ये शक्तिशाली होते है।
16.एक–दूसरे के आज्ञाचक्र को चूमने से मनासिक शक्ति प्रबल होती है।
17.चषक (पानपात्र) को सम्हाल कर रखें। इनका दिव्य महत्त्व होता है।
18.घट हर बार न्य लें, पूराने को विसर्जित कर दें।
घट के प्रसाद में मध के साथ सुगन्धित पदार्थ और गुलाब –केवड़ा जैसे फूलों को रखने का निर्देश मिलता है |
१२.
जब कुंडलिनी
जाग्रत होने लगती है तो पहले व्यक्ति को उसके मूलाधार चक्र में स्पंदन का अनुभव
होने लगता है |फिर वह कुंडलिनी तेजी से ऊपर उठती है और अगले चक्र पर जाकर रूकती है
|उसके बाद साधना जारी रहने पर फिर ऊपर उठने लग जाती है और अगले चक्र तक पहुचती है
|जिस चक्र पर यह रूकती है उसके व् उसके नीचे के चक्रों में स्थित नकारात्मक ऊर्जा
को हमेशा के लिए नष्ट कर चक्र को स्वच्छ और स्वस्थ कर देती है |
जाग्रत होने लगती है तो पहले व्यक्ति को उसके मूलाधार चक्र में स्पंदन का अनुभव
होने लगता है |फिर वह कुंडलिनी तेजी से ऊपर उठती है और अगले चक्र पर जाकर रूकती है
|उसके बाद साधना जारी रहने पर फिर ऊपर उठने लग जाती है और अगले चक्र तक पहुचती है
|जिस चक्र पर यह रूकती है उसके व् उसके नीचे के चक्रों में स्थित नकारात्मक ऊर्जा
को हमेशा के लिए नष्ट कर चक्र को स्वच्छ और स्वस्थ कर देती है |
कुंडलिनी के
जाग्रत होने पर व्यक्ति सांसारिक विषय भोगों से दूर होने लगता है और उसका रुझान
अध्यात्म ,पवित्रता ,शुद्धता के साथ रहस्य जानने की और होने लगता है |कुंडलिनी
जागरण से शारीरिक और मानसिक ऊर्जा बढ़ जाती है और व्यक्ति खुद में शक्ति और सिद्धि
का अनुभव करने लगता है |कुंडलिनी जागरण के प्रारम्भिक काल में हूँ हूँ की गर्जना
सुनाई दे सकती है |आँखों के सामने पहले काला ,फिर पीला और बाद में नीला रंग दिखाई
दे सकता है |साधक को अपना शरीर गुबारे की तरह हवा में उठता अथवा हल्का लग सकता है
|वह गेंद की तरह अपने स्थान पर ऊपर नीचे उठता गिरता महसूस कर सकता है |ऐसा लग सकता
है की गर्दन का भाग ऊपर उठ रहा है |उसे सर में शिखा के स्थान पर चींटियाँ चलने का
अनुभव हो सकता है |सर के उपरी भाग पर दबाव महसूस हो सकता है |सर पर प्रकाश अथवा
ऊर्जा आती महसूस हो सकती है |रीढ़ में कम्पन महसूस हो सकता है |
जाग्रत होने पर व्यक्ति सांसारिक विषय भोगों से दूर होने लगता है और उसका रुझान
अध्यात्म ,पवित्रता ,शुद्धता के साथ रहस्य जानने की और होने लगता है |कुंडलिनी
जागरण से शारीरिक और मानसिक ऊर्जा बढ़ जाती है और व्यक्ति खुद में शक्ति और सिद्धि
का अनुभव करने लगता है |कुंडलिनी जागरण के प्रारम्भिक काल में हूँ हूँ की गर्जना
सुनाई दे सकती है |आँखों के सामने पहले काला ,फिर पीला और बाद में नीला रंग दिखाई
दे सकता है |साधक को अपना शरीर गुबारे की तरह हवा में उठता अथवा हल्का लग सकता है
|वह गेंद की तरह अपने स्थान पर ऊपर नीचे उठता गिरता महसूस कर सकता है |ऐसा लग सकता
है की गर्दन का भाग ऊपर उठ रहा है |उसे सर में शिखा के स्थान पर चींटियाँ चलने का
अनुभव हो सकता है |सर के उपरी भाग पर दबाव महसूस हो सकता है |सर पर प्रकाश अथवा
ऊर्जा आती महसूस हो सकती है |रीढ़ में कम्पन महसूस हो सकता है |
भैरवी–साधना सिद्ध होे जाने पर साधक को ब्रह्माण्ड में गूँज रहे दिव्य मंत्र सुनायी पड़ने लगते हैं,दिव्य प्रकाश दिखने लगता है तथा साधक के मन में दीर्घ अवधि तक काम–वासना जागृत नहीं होती । साथ ही उसका मन शान्त व स्थिर हो जाता है तथा उसके चेहरे पर एक अलौकिक आभा झलकने लगती है ।प्रत्येक साधना में कोई–न–कोई कठिनाई अवश्य होती है । भैरवी–साधना में भी जो सबसे बड़ी कठिनाई है–वह है अपने आप को काबू में रखना तथा साधक व साधिका का पतित न होना । निश्चय ही गुरु–कृपा और निरन्तर के अभ्यास से यह सम्भव हो पाता है ।भैरवी–साधना प्रकारान्तर से शिव–शक्ति की आराधना ही है । शुद्ध और समर्पित भावसे,गुरु–आज्ञानुसार साधक यदि इसको आत्मसात् करें तो जीवन के परम लक्ष्य–ब्रह्मानंद की उपलब्धि उनके लिए सहज सम्भव हो जाती है ।किन्तु,कलिकाल के कराल–विकराल जंजाल में फंसे हुए मानव के लिए भैरवी–साधना के रहस्य को समझ पाना अति दुष्कर है । यंत्रवत् दिनचर्या व्यतीत करने वाले तथा भोगों की लालसा में रोगोंको पालने वाले आधुनिक जीवन–शैली के दास भला इस दैवीय साधना के परिणामों से वैâसे लाभान्वित हो सकते हैं?इसके लिए शास्त्र और गुरु–निष्ठा के साथ–साथ गहन आत्मविश्वास भी आवश्यक है ।
विशेष –
उपरोक्त प्रक्रिया एक सामान्य ज्ञान है जो कुंडलिनी तंत्र पर आधारित है ,जबकि
पूर्ण ज्ञान गुरु सानिध्य में ही संभव है |तंत्र द्वारा कुंडलिनी जागरण हेतु तथा
विभिन्न प्रकार की अलग -अलग भैरवी साधना मीन कुछ भिन्न प्रक्रियाएं भी अपनाई जाती
हैं जो अत्यंत गोपनीय और कठिन होती है ,उनका ज्ञान गुरु ही कराता है
|……………………………………………………………………हर–हर महादेव
उपरोक्त प्रक्रिया एक सामान्य ज्ञान है जो कुंडलिनी तंत्र पर आधारित है ,जबकि
पूर्ण ज्ञान गुरु सानिध्य में ही संभव है |तंत्र द्वारा कुंडलिनी जागरण हेतु तथा
विभिन्न प्रकार की अलग -अलग भैरवी साधना मीन कुछ भिन्न प्रक्रियाएं भी अपनाई जाती
हैं जो अत्यंत गोपनीय और कठिन होती है ,उनका ज्ञान गुरु ही कराता है
|……………………………………………………………………हर–हर महादेव
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