शिवलिंग के पूजन का विधान क्यों है ?


क्यों है शिवलिंग के पूजन का विधान   
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ॐ माता शक्ति ने १०८ बार जनम ग्रहण किया है| शिव की प्राप्ति हेतु माता शक्ति के पास स्थूल शरीर को अमर करने का ज्ञान न होने के कारण हि उनकी मृत्यु होती गई और प्रत्येक जनम में वो शिव स्वरूप शंकर जी कि अर्धांगिनी बनती गई | जिस का प्रमाण उनके गले में माता के १०८ नर मुंडों से प्रतीत होता है | स्थूल शरीर को अमर करने का ज्ञान माता शक्ति को परमात्मा शिव ने १०८ वे जन्म में परमात्मा शिव ने दिया जब को परवत राज हिमालय की पुत्री पार्वती के नाम से व्यख्यात हुई | माता अपने १०७वें जन्म में राजा दक्ष की पुत्री बनी और उनका नाम सती कहलाया | माता सती के पिता राजा दक्षजी ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन रखा और पूर्ण पृथ्वी के राजा, महाराजाओं इत्यादि को उस यज्ञ में बुलवाया | शंकरजी उनके दामाद होते हुए भी उन को आमंत्रण नहीं दिया गया | भूतनाथ होने के कारण ही राजादक्ष उनसे घृणा करते थे | माता सती ने जब महादेवजी से यज्ञ में पधारने को कहा तो उन्होंने आमंत्रण न दिए जाने की वजह से यज्ञ में जाने से इनकार कर दिया | बिन आमंत्रण के जाने से उचित सम्मान की प्राप्ति नहीं होती | पिता मोह के कारण माता सती से नहीं रूका गया और वो यज्ञ के लिए अकेले ही चल पड़ी | माता जब यज्ञस्थल पर पहुंची तो उन्होंने देखा की पूर्ण यज्ञ में कहीं भी उनके पति महादेवजी का आसन मात्र भी नहीं है | यह देखकर माता को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने पिता राजा दक्षजी से इस बात पर तर्क किया | उस समय राजा दक्षजी ने बड़े ही हीन वचन शंकरजी के बारे में कहें जिन को माता न सुन पाई और यज्ञ के अग्नि कुंड में कूदकर स्वयं को उन्होंने भस्म कर लिया | इस बात की सूचना जब महादेवजी को मिली तो वे अत्यंत क्रोधित हुए और उनके गणों ने पूर्ण यज्ञ का विध्वंस कर दिया | महादेवजी ने राजा दक्ष का सिर काट दिया और उसके शरीर पर बकरे का सिर जोड़ दिया | माता सती के पार्थिव शरीर को उठकर शंकरजी वहां से चल दिए | माता का शरीर अग्नि में जलकर कोयला हो चुका था | शक्ति के बिना शिव फिर से अधूरे हो गए | इस समय काल में ही उनकी लिंग का पतन बारह टुकड़ों में हुआ और उसी समय ब्रह्माण्ड से यह बाराह ज्योतिलिंगों की स्थापना पृथ्वी पर हुई |


इनकी स्थापना के समय पूर्ण पृथ्वी में कंपन मच गई | जिस प्रकार से पृथ्वी का विराट है उसी प्रकार शिव बाबा का भी विराट रूप मौजूद है ब्रह्माण में जिस के दर्शनों तक पहुंचने हेतु मानव के पास कोई यंत्र नहीं है | परमात्मा शिव विराट रूप में भी हैं और ज्योर्तिबिंदू रूप में भी है | ज्योर्तिबिंदू रूप में वो परकाया प्रवेश कर पाते हैं | उनके इस विराट रूपी ज्योर्तिलिंगों ने पूर्ण सृष्टी में कोहराम मचा दिया | सृष्टि को विनाश से बचाने हेतु ब्राह्मणों ने ब्रह्माजी का आव्हान किया और इस समस्या का समाधान उनसे पूछा | उस समय ब्रह्माजी नेे स्पष्ट रूप से बताया कि शिवलिंग पूजन नारी के लिए वर्जित है |


शिवलिंग पूजन के समय नारी अपने पति के बाएं हाथ पर स्थानग्रहण करेगी और शिवलिंग पूजन का फल पति- पत्नी दोनों ग्रहण कर पाएंगे | यज्ञ आदि के अनुष्ठान में पत्नी नर के दाहिने हाथ पर आसन ग्रहण करती है क्योंकि उस समय वो लक्ष्मी का रूप मानी जाती हैं | नारी अगर शिवलिंग की पूजा आराधना अकेले संपन्न करती है तो वो पाप कर्म की अभागी होती है | शिवलिंग अभिषेक पति- पत्नी दोनों द्वारा ही संपन्न होने चाहिए | ब्रह्माजी ने चारों वर्णों के लिए अलग- अलग शिवलिंग की व्याखा भी बताई है |


1. ब्राह्मण वर्ग- परशिव (मिट्टी के) बामी मिट्टी जिसमें सर्प का वास होता है |
2. छत्रिय वर्ग- सफेद मिट्टी
3. वैश्य वर्ग- पिली मिट्टी
4. शूद्र वर्ग- काली मिट्टी


मानव अपने जीवन में अनेकों प्रकार के कष्टों से घिरा रहता है | इन कष्टों के निर्वाण हेतु ही भिन्न- भिन्न तत्वों से रूद्रा अभिषेक के विधान बताऐं गए | जिस प्रकार गाय के दूध से शिवलिंग अभिषेक से स्वास्थ अच्छा रहता है उसी प्रकार से गन्ने के रस से लक्ष्मी की प्राप्ति इत्यादि- इत्यादि | जैसा कष्ट वैसा समाधान …………………………………………………………………………हर-हर महादेव

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