Month: April 2018
शाम्भवी मुद्रा [ SHAMBHAVI MUDRA ]
शाम्भवी मुद्रा और उसके लाभ ================== शाम्भवी मुद्रा को भगवान शिव की मुद्रा भी कहा जाता है| जब इस साधना को लम्बे समय तककिया जाता है तो बहुत ज्यादा नींद आने लगती है| इस मुद्रा को करने के बाद साधक घण्टो तक एकआसन पर चेतन अवस्था मे रहकर साधना कर सकते है। जब इस शाम्भवी योग को किया जाता हैतो दोनो आँखे ऊपर मस्तिष्क में चढ़ जाती है और दिव्य प्रकाश के दर्शन भी होने लगते है। दृष्टि को दोनों भौहों के मध्य स्थिर करके एकाग्र मन से परमात्मा का चिंतन करें तो ध्यान कीपरिवक्वता होने पर ज्योति दर्शन होता है| यही शाम्भवी मुद्रा है| आत्म साक्षात्कार के आकांक्षीपुरुषों के लिए यह अत्यंत कल्याणकारी मुद्रा है| शाम्भवी मुद्रा का अभ्यास करने पर आपकी मानसिक क्षमता में इजाफा होता है| यह आपकेमस्तिष्क में जबरदस्त तालमेल बिठाता है जिसके चलते मानसिक क्षमता बढती है| इससे बुद्धीबढती है तथा सिखने की गति भी, इसलिए स्टूडेंट्स को तो इसे जरुर करना चाहिए| इससे नींद कीगुणवत्ता में भी सुधार आता है याने की आप रात को अच्छी नींद ले पाते है| इसके मात्र 20 से 25मिनट के नियमित अभ्यास से आपके अन्दर ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता बढती है| इससेआपका तनाव दूर होता है और आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है | इसके अभ्यास से मासिक धर्म कीअनियमितता, चिड़चिड़ापन, रक्त का बहुत ज्यादा स्त्राव आदि लक्षणों में सुधार देखने को मिला है| इससे मानसिक और भावनात्मक सेहत सुधरती है| इसके नियमित अभ्यास से मधुमेह, सिरदर्द,मोटापा, थाइरॉयड आदि में दिक्कत होती है| इससे दिल की सेहत सुधरती है और दिल के रोग होनेका खतरा कम होता है| इससे उर्जा का स्तर 80% तक बढ़ जाता है| Wear loose fitting…
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वजौली मुद्रा [ VAJROLI MUDRA ]
बज्रौली मुद्रा :: तेजस्वी बनाए ==================== बज्रौली मुद्रा भी मूलबंध का अच्छा अभ्यास किए बिना किसी प्रकार संभव नहीं है| यह मुद्रा केवलयोगी के लिए ही नहीं, भोगी के लिए भी अत्यंत लाभकारी है| इस मुद्रा में पहले दोनों पांवों को भूमिपर दृढ़तापूर्वक टिकाकर, दोनों पांवों को धीरे–धीरे दृढ़तापूर्वक ऊपर आकाश में उठा दें| इससे बिंदु–सिद्धि होती है| शुक्र को धीरे–धीरे ऊपर की आकुंचन करें अर्थात् इंद्रिय के आंकुचन के द्वारा वीर्य को ऊपर की ओरखींचने का अभ्यास करें तो यह मुद्रा सिद्ध होती है| विद्वानों का मत है कि इस मुद्रा के अभ्यास मेंस्त्री का होना आवश्यक है, क्योंकि भग में पतित होता हुआ शुक्र ऊपर की ओर खींच लें तो रज औरवीर्य दोनों ही चढ़ जाते हैं| यह क्रिया अभ्यास से ही सिद्ध होती है| कुछ योगाचार्य इस प्रकार काअभ्यास शुक्र के स्थान पर दुग्ध से करना बताते हैं| जब दुग्ध खींचने का अभ्यास सिद्ध हो जाए, तबशुक्र को खींचने का अभ्यास करना चाहिए| वीर्य को ऊपर खींचनेवाला योगी ही ऊर्ध्वरेता कहलाता है| इस मुद्रा से शरीर हृष्ट–पुष्ट, तेजस्वी, सुंदर, सुडौल और जरा–मृत्यु रहित होता है| शरीर के सभीअवयव दृढ़ होकर मन में निश्चलता की प्राप्ति होती है| इसका अभ्यास अधिक कठिन नहीं है| यदिगृहस्थ भी इसके करें, तो बलवर्द्धन और सौंदर्यवर्द्धन का पूरा लाभ प्राप्त कर सकते हैं| Vajroli Mudra is one of…
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अश्विनी मुद्रा [ ASHWINI MUDRA ]
अश्विनी मुद्रा :; गुदा ,उदर रोग दूर करे ======================== इस मुद्रा से साधक में घोड़ों जैसी शक्ति आ जाती है, जिसे ‘हॉर्स पॉवर’ कहते हैं| इस मुद्रा में गुदा–द्वार का बार–बार संकोचन और प्रसार किया जाता है| इसी से मुद्रा की सिद्धि हो जाती है| इसकेद्वारा कुण्डलिनी जागरण में सुगमता रहती है और अनेक रोग नष्ट होकर शारीरिक बल की वृद्धिहोती है| अश्विनी मुद्रा सिद्ध होने से साधक की अकालमृत्यु कभी नहीं होती| गुदा और उदर सेसंबंधित रोगों का इसके द्वारा शमन होता है तथा दीर्घजीवन की उपलब्धि होती है| बिना मूलबंध केअश्विनी मुद्रा नहीं हो सकती| Ashwa means “horse” in Sanskrit, and mudra is a “gesture” or…
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